खुश थी वो आज मेरी काली स्याही, जब वो सफेद काग़ज के काम आई।
खुशी से वो इतनी शब्दों में फैली, मिली हो उससे जैसे कोई बिछडी सहेली।
उसको खुद की कोई सुध ना आई, खुश थी वो आज मेरी काली स्याही।
कब से थी वो खुद के विराने में बंद , नहीं जानती थी वो खुद के रंग।
जब नाची वो खोल के अपने रंग का आंचल , सफेद काग़ज भी झूमा जैसे पागल सा बादल।
कहानी ने उसकी की याद सारी खुदाई, खुश थी वो आज मेरी काली स्याही।।
खुशी से वो इतनी शब्दों में फैली, मिली हो उससे जैसे कोई बिछडी सहेली।
उसको खुद की कोई सुध ना आई, खुश थी वो आज मेरी काली स्याही।
कब से थी वो खुद के विराने में बंद , नहीं जानती थी वो खुद के रंग।
जब नाची वो खोल के अपने रंग का आंचल , सफेद काग़ज भी झूमा जैसे पागल सा बादल।
कहानी ने उसकी की याद सारी खुदाई, खुश थी वो आज मेरी काली स्याही।।