धीरे धीरे से तू जह्न में उतरा यूं है
मैं डूबा सा हूं या ठहरा सा हूं, तेरे इश्क़ में।
नजरों की खता समझ या दिल का जुनून है ये
मैं उलझा सा हूं या सुलझा सा हूं, तेरे इश्क़ में।
गलत क्या है सही क्या है, ना आता है समझ
मैं बिगड़ा सा हूं या सुधरा सा हूं, तेरे इश्क़ में।
ये रंग जो चढा है तेरा इश्क़ का मुझ पर
मेरा हर पल खिल उठा है, तेरे इश्क़ में।
मैं डूबा सा हूं या ठहरा सा हूं, तेरे इश्क़ में।
नजरों की खता समझ या दिल का जुनून है ये
मैं उलझा सा हूं या सुलझा सा हूं, तेरे इश्क़ में।
गलत क्या है सही क्या है, ना आता है समझ
मैं बिगड़ा सा हूं या सुधरा सा हूं, तेरे इश्क़ में।
ये रंग जो चढा है तेरा इश्क़ का मुझ पर
मेरा हर पल खिल उठा है, तेरे इश्क़ में।
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